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Home सम्पादकीय

26 नवम्बर को विद्युत कर्मियो की देश व्यापी हड़ताल का कारण ,  स्थाई निदान की जरूरत

Niharika Shrivastava by Niharika Shrivastava
November 25, 2020
in सम्पादकीय
26 नवम्बर को विद्युत कर्मियो की देश व्यापी हड़ताल का कारण ,  स्थाई निदान की  जरूरत
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BY: विवेक रंजन श्रीवास्तव

जबलपुर : 26 नवम्बर 2020 को विद्युत कर्मियो की देश व्यापी हड़ताल का कारण बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों की राष्ट्रीय समन्वय समिति अर्थात नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इम्पलॉईस एन्ड इंजीनियर्स (एनसीसी ओईईई) का इस हेतु आह्वान है .  सर्वागीण आत्म निर्भर भारत के विकास में ऐसी हड़ताल प्रश्नसूचक है .सरकार को पता लगाना होगा कि  क्या कारण है कि देश के सभी प्रांतों के 15 लाख बिजली कर्मचारी, इंजीनियर ऐसा अप्रिय निर्णय लेने को विवश हो रहे हैं . दरअसल केन्द्र और राज्य सरकारों की निजीकरण की नीति के विरोध में सात सूत्रीय माँगों को लेकर 26 नवम्बर को बिजली कर्मी राष्ट्रव्यापी हड़ताल पर रहेंगे। उन्होंने उपभोक्ताओं और किसानों से भी समर्थन की अपील की है। कोविड -19 महामारी के दौरान बिजली कर्मियों ने स्वयं अपनी जान की परवाह किये बिना अस्पतालो सहित देश में सतत बिजली आपूर्ति बनाये रखने , लाक डाउन के दौरान अचानक इंटरनेट डाटा की डिमान्ड में वृद्धि हेतु इंटरनेट टावर्स को अबाध विद्युत आपूर्ति में अपना कौशल लगा दिया  , पर उन्हें लगता है कि इसी समय में केन्द्र सरकार और कुछ राज्य सरकारें बिजली वितरण का निजीकरण करने पर अतार्किक रूप से तुली हुई हैं . बिजली कर्मी विद्युत प्रदाय के  निजीकरण के उद्देश्य से लाये गए इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल 2020 और बिजली वितरण के निजीकरण के स्टैण्डर्ड बिडिंग डॉक्मेंट को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं.
विद्युत वितरण के निजीकरण से कृषि उपभोक्ताओ सहित सभी बिजली उपभोक्ता निजी क्षेत्र की स्वार्थी , धन लोलुप शुद्ध कमर्शियल नीतीयों का शिकार होजायेंगे . यद्यपि अभी अज्ञानता के चलते उन्हें इस आसन्न संकट का बोध ही नही है . समझा जाता है कि इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल 2020 और बिजली वितरण के निजीकरण के स्टैण्डर्ड बिडिंग डॉकुमेंट के अनुसार लागत से कम मूल्य पर किसी को भी बिजली नहीं दी जाएगी और सब्सिडी समाप्त कर दी जाएगी , जबकि आज कृषि क्षेत्र को भारी सब्सिडी से बिजली आपूर्ति हो रही है . राज्य सरकारें सरकारी बिजली कंपनियो का इसतेमाल करती दिखती हैं . करोड़ो रु की सब्सिडी की राशि सरकारो को बिजली कंपनियो को देनी शेष है . इसका दुष्परिणाम यह हो रहा है कि बिजली कंपनियां घाटे में दिखती हैं , जबकि उसके कर्मचारी कम होते स्टाफ के बाद भी प्राण पण से अपने कर्तव्य निभा रहे हैं . कर्मचारियो को इस प्रस्तावित निजीकरण से अपनी सेवा शर्तो व पेंशन का भय सता रहा है . सरकारो के द्वारा कोई स्पष्टीकरण या आश्वासन देकर बिजली कर्मियो का भरोसा जीतने का प्रयास नही हो रहा नही दिखता . लोकतंत्र में व्यवस्थाओ में कोई भी बड़ा परिवर्तन जन समर्थन , कर्मचारियो के भरोसे को जीते बगैर संभव नही होता किंतु सरकारें सब कुछ समझ कर भी समझना और समझाना नही चाह रहीं, इससे बिजली उद्योग में अविश्वास की नकारात्मक भावना व  भय पैदा हो रहा है . कर्मचारी जो किसी भी संस्थान की रीढ़ होते हैं उनमें उहापोह की स्थिति है . उल्लेखनीय है कि अन्य राज्यो के सफल माडेल का अनुकरण सारे देश में होना चाहिये पर राजनैतिक कारणो से व्यापक राष्ट्रीय हित में जो होना चाहिए वह नही होता दिखाई देता। बिजली कंपनियों का पुनः एकीकरण कर केरल के केएसईबी लिमिटेड की तरह सभी प्रांतों में एसईबी लिमिटेड का पुनर्गठन किया जाना आज समय की जरूरत लगती है . एक देश एक बिजली , देश भर में समान बिजली दरें बनाने के लिये बिजली को संविधान में केंद्रीय विषय बनाया जाना चाहिये था , पर यह बड़ी गलती दशकों से चली आ रही है जिसमें विभिन्न कारणो से  त्वरित परिवर्तन संभव नही लगता . सुधार के नाम पर वर्षो की मेहनत से खड़े किये गये इंफ्रास्ट्रक्चर को बिडिंग डाक्यूमेंट के जरिये कौड़ियो के मोल निजी हाथों में सौपने की संभावना का विरोध बिजली कर्मी कर रहे हैं .यदि यह परिवर्तन देश के व्यापक हित में है तो सरकारो को बिजली उद्योग से जुड़े सभी कर्मचारियो व प्रभावित होने वाले उपभोक्ताओ का भरोसा जीतना चाहिये , जो संवाद से ही संभव है . किन्तु ऐसा कोई प्रयास होता नही दिखता, कानून के जरिये आमूल चूल परिवर्तन का प्रयास संदेह को जन्म देता है. बिजली आज विकास का मूल आधार है, अब समय आ चुका है कि बिजली आपूर्ति को मौलिक अधिकार माना जावे, तभी देश आत्मनिर्भरता के वास्तविक स्वरूप में वैश्विक पहचान बना सकेगा .

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