हिन्दी पद्यानुवादक: प्रो सी बी श्रीवास्तव विदग्ध
मो ९४२५४८४४५२
युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी विगतकल्मषः ।
सुखेन ब्रह्मसंस्पर्शमत्यन्तं सुखमश्नुते ॥
ऐसी विधि से साध मन,कर योगी अभ्यास
जाता पा सुख शांति सब परब्रम्ह के पास।।28।।
भावार्थ : वह पापरहित योगी इस प्रकार निरंतर आत्मा को परमात्मा में लगाता हुआ सुखपूर्वक परब्रह्म परमात्मा की प्राप्ति रूप अनन्त आनंद का अनुभव करता है॥28॥
- The Yogi, always engaging the mind thus (in the practice of Yoga), freed from sins,
easily enjoys the infinite bliss of contact with Brahman (the Eternal).