हिन्दी पद्यानुवादक: प्रो सी बी श्रीवास्तव विदग्ध
मो ९४२५४८४४५२
शनैः शनैरुपरमेद्बुद्धया धृतिगृहीतया।
आत्मसंस्थं मनः कृत्वा न किंचिदपि चिन्तयेत् ॥
धीरे धीरे बुद्धि से विषयों को कर दूर
मन को अपने आप में रहने को मजबूर।।25।।
भावार्थ : क्रम-क्रम से अभ्यास करता हुआ उपरति को प्राप्त हो तथा धैर्ययुक्त बुद्धि द्वारा मन को परमात्मा में स्थित करके परमात्मा के सिवा और कुछ भी चिन्तन न करे॥25॥
- Little by little let him attain to quietude by the intellect held firmly; having made the
mind establish itself in the Self, let him not think of anything.