हिन्दी पद्यानुवादक: प्रो सी बी श्रीवास्तव विदग्ध
मो ९४२५४८४४५२
यत्रोपरमते चित्तं निरुद्धं योगसेवया ।
यत्र चैवात्मनात्मानं पश्यन्नात्मनि तुष्यति ॥
योगाभ्यासी अचल मन हो स्थिर सांनद
आत्मा का कर निरीक्षण पाता आत्मानंद।।20।।
भावार्थ : योग के अभ्यास से निरुद्ध चित्त जिस अवस्था में उपराम हो जाता है और जिस अवस्था में परमात्मा के ध्यान से शुद्ध हुई सूक्ष्म बुद्धि द्वारा परमात्मा को साक्षात करता हुआ
सच्चिदानन्दघन परमात्मा में ही सन्तुष्ट रहता है॥20॥
- When the mind, restrained by the practice of Yoga, attains to quietude, and when, seeing
the Self by the Self, he is satisfied in his own Self,