हिन्दी पद्यानुवादक: प्रो सी बी श्रीवास्तव विदग्ध
मो ९४२५४८४४५२
यथा दीपो निवातस्थो नेंगते सोपमा स्मृता ।
योगिनो यतचित्तस्य युञ्जतो योगमात्मनः ॥
योगी का मन अचंचल रहता स्थिर शांत
वायु सुरक्षित दीप की लौ ज्यों अचल प्रशांत।।19।।
भावार्थ : जिस प्रकार वायुरहित स्थान में स्थित दीपक चलायमान नहीं होता, वैसी ही उपमा परमात्मा के ध्यान में लगे हुए योगी के जीते हुए चित्त की कही गई है॥19॥
- As a lamp placed in a windless spot does not flicker-to such is compared the Yogi of
controlled mind, practising Yoga in the Self (or absorbed in the Yoga of the Self).